चौखी धानी: जयपुर में संस्कृति, कला और देहात की आत्मा को भी अपने साथ समेटे हुए है
लाहौल-स्पीति की धरती पर कदम रखते ही ऐसा लगता है मानो आप किसी और दुनिया में आ गए हों। पत्थर के बने छोटे-छोटे गाँव, लकड़ी और मिट्टी से बने घर, और दूर-दूर तक फैली निस्तब्ध वादियाँ—इन सबमें जीवन की एक सरल लय बहती है। यहाँ का हर दिन सूर्योदय से शुरू होता है जब बर्फ़ से ढकी चोटियों पर सुनहरी किरणें पड़ती हैं, और शाम होते-होते पूरा आसमान लालिमा से रंग जाता है।
यह इलाका सिर्फ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। बौद्ध धर्म के मठ, जैसे की-मठ या ताबो मठ, इस क्षेत्र की आत्मा हैं। यहाँ की प्रार्थनाओं की ध्वनि और घूमते हुए प्रार्थना-चक्र इस घाटी में एक अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण रचते हैं। स्थानीय लोग सादगी और अपनापन से भरे हैं, और उनकी मुस्कानें ठंडे मौसम को भी गर्माहट दे देती हैं।
लाहौल-स्पीति की यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं। सड़कों के मोड़ और ऊँचाई पर चढ़ते हुए रास्ते यात्रियों की परीक्षा लेते हैं, पर हर मुश्किल के बाद जो दृश्य सामने आता है, वह सारी थकान मिटा देता है। चंद्रताल झील की नीली चमक, काज़ा का शांत वातावरण, और रास्ते में बर्फ़ से ढकी वादियाँ—ये सब मन में गहरे अंकित रह जाते हैं।
यहाँ का मौसम बदलते ही सब कुछ बदल जाता है। गर्मियों में यह जगह यात्रियों से भर जाती है, जबकि सर्दियों में बर्फ़ की मोटी चादर इसे मानो एक स्वप्नलोक बना देती है। जब बर्फ़ के बीच से सूर्य की किरणें झांकती हैं, तो पूरा दृश्य किसी चित्र की तरह जीवंत लगता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें